हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष के दिन भोलेनाथ की उपासना करने से सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है और जीवन में वैभव प्राप्त की प्राप्ति होती है। प्रत्येक महीने में प्रदोष व्रत दो बार आता। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है।
प्रदोष व्रत करने से जन्म-जन्मान्तर के चक्र से मुक्ति मिलती है,इस व्रत से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं,प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं,प्रदोष व्रत करने से शिव धाम की प्राप्ति होती है,प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं,प्रदोष व्रत करने से सुहागन स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है,प्रदोष व्रत करने से मन शांत रहता है,प्रदोष व्रत करने से एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन से राहत मिलती है,प्रदोष व्रत करने से पाचन तंत्र बेहतर तरीके से काम करने लगता है|
प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है,प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए,प्रदोष व्रत के दिन सफ़ेद रंग के वस्त्र पहनने चाहिए,प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. प्रदोष व्रत को आप अपनी इच्छा और श्रद्धा के मुताबिक साल तक या आजीवन रख सकते हैं. हालांकि, शास्त्रों के मुताबिक, 11 या 26 त्रयोदशी तिथियों तक प्रदोष व्रत रखना शुभ माना जाता है. अगर आप मनोकामना पूरी करना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत लगातार 11 या 26 त्रयोदशी तक रखें. इसके बाद इसका विधि-विधान से उद्यापन करें.उद्यापन में पूजा-पाठ करना होता है और दान-पुण्य के कार्य भी करने होते हैं. उद्यापन के लिए पूजा स्थल को साफ़ करना होता है और भगवान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी होती है. इसके बाद, भगवान को फूल, माला, पान, सुपारी, मौली, जनेऊ, नैवेद्य चढ़ाना होता है. इसके बाद, भोग लगाना होता है और आरती करनी होती है. अंत में, किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान-पुण्य करना होता है|
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