वाराणसी :- गंगा से रेत का दायरा चार गुना चौड़ा हो गया है। जगह-जगह रेत के टीले नजर आने लगे हैं। गंगा के किसी घाट से सामने की ओर देखने पर मानो लग रहा है कि काशी का रेगिस्तान है। बड़े-बड़े टीले आमतौर पर जून महीने में नजर आते थे, लेकिन यह अप्रैल से ही नजर आ रहे हैं। घाटों को गंगा छोड़ चुकी है।
अस्सी घाट से करीब 200 मीटर दूर हो गई है। वैज्ञानिक इन बदलावों को लेकर चिंतित हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हर साल गंगा के जलस्तर में 0.5 से 38.1 सेंटीमीटर की कमी आ रही है। आईआईटी के पूर्व नदी वैज्ञानिक प्रो. यूके चौधरी ने बताया कि रेत पहले रामनगर किले के सामने जमा होती थी, लेकिन अब पिछले कुछ समय में गंगा के प्रवाह में बदलाव आया है। इसके चलते अब पश्चिम के बजाय पूरब में रेत जमा होने लगी है। यह भी अच्छे संकेत नहीं हैं। महाकुंभ के बाद काशी से लेकर चंदौली तक जगह-जगह रेत के टीले उभर आए हैं। चंदौली और गाजीपुर के बीच गंगा में छह से सात किलोमीटर लंबा चौड़ा रेत का टीला निकल आया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक चंदौली जिले के धानापुर के पास नरौली घाट से गाजीपुर जनपद के रामपुर माझा तक आवागमन नाव से होता है, लेकिन नरौली घाट से नाव से उस पार जाकर फिर लगभग छह किलोमीटर पैदल चलने के बाद फिर नाव पकड़ कर रामपुर माझा तक पहुंचते है। अब जलस्तर अप्रैल में ही इतना कम हो गया है कि नाव चलाना भी इस रास्ते पर मुश्किल है। गंगा के बीच में टीले उभरने की वजह से गंगा के दोनों किनारों पर कटान स्थानीय लोगों की मुश्किलें बढ़ा देती है। प्रो. चौधरी कहते हैं कि इन सभी समस्याओं से बाहर निकलना है तो गंगा में पानी का प्रवाह बढ़ाना होगा। गंगा में पानी प्रवाह बढ़ेगा तो गंगा खुद इन सभी समस्याओं को दूर कर देगी।
