वाराणसी : महाकुंभ के पलट प्रवाह ने बनारस की अर्थव्यवस्था को नया आयाम दिया है। 45 दिनों में महाकुंभ से लगभग पांच करोड़ लोग बनारस पहुंचे। प्रयागराज से वाराणसी आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा हुआ। छोटे व्यवसायी, ई-रिक्शा और ऑटो-रिक्शा चालकों ने पहले की तुलना में तीन गुना से अधिक की कमाई की। बनारस आने वाले श्रद्धालुओं ने न्यूनतम 54 हजार करोड़ और अधिकतम 67,500 करोड़ रुपये खर्च किए। आंकड़ों के अनुसार रोजाना 1200 से 1500 करोड़ रुपये खर्च हुए। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध डीएवी पीजी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनूप कुमार मिश्र ने महाकुंभ के दौरान बनारस की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का अध्ययन किया। उनकी टीम ने होटल, रेस्तरां, परिवहन, दुकानदार और हस्तशिल्प के व्यापारियों से जुड़े हुए प्रश्नों के आधार पर डेटा तैयार किया। अध्ययन से पता चला है कि 14 जनवरी से 28 फरवरी तक लगभग पांच करोड़ लोग प्रयागराज महाकुंभ से स्नान करके वाराणसी आए। इन लोगों ने औसतन तीन हजार से चार हजार रुपये प्रति दिन खर्च किए। महाकुंभ से लौटे श्रद्धालुओं ने रोजाना 1200 से 1500 करोड़ रुपये किए खर्च – वाराणसी की अर्थव्यवस्था को काफी लाभ हुआ है। अगर रोजाना चार से पांच लाख लोग बनारस आए तो उन्होंने प्रति व्यक्ति तीन हजार से चार हजार रुपये खर्च किया। न्यूनतम 54 हजार करोड़ और अधिकतम 67 हजार पांच सौ करोड़ रुपये खर्च हुए। 45 दिनों में पलट प्रवाह से वाराणसी की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ। श्रद्धालुओं के आगमन से स्थानीय व्यवसायों में वृद्धि हुई। इससे परिवहन सेवाओं की मांग बढ़ी है, बल्कि स्थानीय होटल, भोजनालय, और अन्य व्यापारों में भी वृद्धि हुई है।छोटे वेंडर्स की आय बढ़ी – प्रोफेसर मिश्र ने बताया कि आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट है कि सभी छोटे वेंडर्स की आय 3-4 गुना तक बढ़ी है। पलट प्रवाह का वाराणसी के छोटे वेंडर्स पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। यदि हम मान लें कि वाराणसी में लगभग 1.5 से 2 लाख छोटे वेंडर्स हैं और उनकी आय भी 3 से 4 गुना बढ़ी है, तो इसका वाराणसी की स्थानीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव हुआ है। वेंडर्स की न्यूनतम आय 15 करोड़ रुपये प्रतिदिन और अधिकतम आय 20 करोड़ रुपये प्रतिदिन रही। इन 45 दिनों में न्यूनतम आय 675 करोड़ और अधिकतम आय 900 करोड़ रुपये रही।
140 लोगों से किए सवाल फिर किया अध्ययन- प्रो. मिश्र ने बताया कि महाकुंभ के पलट प्रवाह का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए होटल, रेस्तरां, परिवहन, दुकानदार, हस्तशिल्प व्यापारियों से डेटा एकत्र किया गया। 140 उत्तरदाताओं से तीन दिनों में साक्षात्कार, पर्यवेक्षण और प्रश्नावली के माध्यम से डेटा संग्रह किया गया। आंकड़ों का विश्लेषण कर व्यवसाय की आय और गतिविधियों में वृद्धि का आकलन किया गया। अध्ययन से न्यूनतम और अधिकतम आर्थिक प्रभावों का अनुमान लगाया गया, जिससे स्थानीय व्यापारों की समृद्धि स्पष्ट हुई। हर क्षेत्र के लोगों ने स्वीकार किया कि जो कमाई साल भर में होती थी वह उन्होंने केवल 45 दिनों में ही कमा लिया।
स्थानीय पर्यटक स्थल पर भीड़ बढ़ने से बढ़ा राजस्व – उन्होंने बताया कि पर्यटकों द्वारा खर्च की गई रकम विभिन्न स्तरों पर वितरित हुई है। होटल, रेस्तरां, परिवहन और दुकानदारों को अधिक लाभ हुआ। स्थानीय पर्यटन स्थलों पर भीड़ बढ़ने से उनका राजस्व बढ़ा। बनारसी साड़ियों, हस्तशिल्प और अन्य स्थानीय उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई।
तीन गुना हुई कमाई – स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा हुआ। छोटे व्यवसायी, जैसे ई-रिक्शा और ऑटो-रिक्शा चालकों ने पहले की तुलना में कहीं अधिक कमाई की। ई रिक्शा चालक पहले 15 सौ रुपये प्रतिदिन कमाते थे लेकिन इन 45 दिनों में उनकी आय 45 सौ से पांच हजार रुपये हो गई थी। उनकी आय लगभग तीन गुना बढ़ गई है। ऑटो-रिक्शा चालक पहले दो हजार रुपये प्रतिदिन कमाने वाले अब छह हजार से 65 सौ रुपये कमा रहे थे।
जनवरी में खप गई 27 लाख किलो से अधिक सीएनजी – जनवरी में जिले के 31 पेट्रोल पंपों पर करीब 2778862 किलो सीएनजी की खपत हो गई। महाकुंभ में अमृत स्नान को जा रहे लोग काशी के रास्ते से प्रयागराज पहुंचे। खासकर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों के वाहन काशी के रास्ते प्रयाग गए और वापस आए। यह खपत आम महीनों की अपेक्षा करीब पांच लाख किलो अधिक है। इसी तरह डीजल का खर्च भी 14 हजार लीटर से करीब 19 हजार लीटर तक पहुंच गया।
पूर्ति विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अक्तूबर 2024 में 22,52,050 किलो सीएनजी की खपत हुई। यह खपत दिसंबर में बढ़कर 2613745 लाख किलो और जनवरी 2025 में 2778862 लाख किलो तक पहुंच गई। वहीं डीजल की खपत अक्तूबर 2024 में 14807 हजार लीटर तो दिसंबर में 19569 लीटर और जनवरी 2025 में 18908 हजार लीटर की खपत हुई। अफसरों ने बताया कि बाहर से आने वाले अधिकतर वाहन यहीं से सिलिंडर फुल कराकर प्रयागराज गए।
जिले में 11 हजार से ज्यादा सीएनजी कारें – आरटीओ के मुताबिक जिले में 11 हजार सीएनजी कार और 23 हजार ऑटो रिक्शा पंजीकृत हैं। साथ ही कुछ सीएनजी बाइक भी हैं। काॅमर्शियल खपत को भी जोड़ दी जाए तो रोजाना करीब एक लाख दस हजार किलो सीएनजी की खपत हो रही है।
